दिसंबर 2023 में नई सरकार के गठन के बाद से सुशासन पर सबसे ज्यादा जोर रहा। संभागीय बैठकों में वरिष्ठ अधिकारियों को मैदान में उतारा गया साथ ही जहां जरूरत हुई वहां सरकार में सख्त कदम भी उठाए। सरकार के सुशासन को लेकर इस सख्त रवैए ने जनमानस पर जो छाप छोड़ी उसका पार्टी को सीधा फायदा मिला। पार्टी पहली बार प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने में सफल रही।
लोकसभा चुनाव-2024 में भाजपा ने जबरदस्त जीत हासिल की है। भाजपा का एनडीए गठबंधन देश की कुल 543 सीटों में से 292 पर जीत हासिल करने में सफल रहा है। बात अगर मध्य प्रदेश की करें तो यहां भाजपा राज्य की सभी 29 सीटों पर भगवा फहराने में सफल रही। लोकसभा चुनाव के परिणामों ने राज्य की मोहन सरकार के प्रदर्शन पर भी मुहर लगा दी है।
पिछले साल दिसंबर में नई सरकार के गठन के बाद से सुशासन पर सबसे ज्यादा जोर रहा। संभागीय बैठकों में वरिष्ठ अधिकारियों को मैदान में उतारा गया, साथ ही जहां जरूरत हुई वहां सरकार में सख्त कदम भी उठाए। सरकार के सुशासन को लेकर इस सख्त रवैए ने जनमानस पर जो छाप छोड़ी उसका पार्टी को सीधा फायदा मिला। जिसके चलते पार्टी पहली बार प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने में सफल रही।
बीते 16 मार्च को चुनाव की घोषणा के साथ ही पूरे देश में आचार संहिता प्रभावी हो गई थी। मोहन सरकार को काम करने के लिए करीब तीन माह का ही समय मिला। इस अवधि में मुख्यमंत्री ने हर वर्ग को साधने का काम किया। विधानसभा चुनाव के समय जो वादे किए गए थे, उन्हें पूरा करने की दिशा में कदम उठाए।
किसानों को गेहूं के उपार्जन पर 125 रुपये का बोनस दिया तो लाड़ली बहना योजना की किस्तों का समय से भुगतान सुनिश्चित कराया। कानून व्यवस्था और विकास को गति देने के लिए संभागीय मुख्यालयों पर जाकर बैठकें की गईं तो वरिष्ठ अधिकारियों को संभागों का प्रभार दिया गया।उज्जैन में क्षेत्रीय औद्योगिक समिट कर बड़ी शुरुआत की। हितग्राहीमूलक योजनाओं के क्रियान्वयन को प्राथमिकता में रखा गया।
क्षेत्रीय स्तर पर औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए इस कदम का उद्योग जगत ने भी हाथों-हाथ लिया। उपचार के लिए एयर एंबुलेंस सेवा की बात हो या फिर अयोध्या धाम में भगवान श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद विमान से दर्शन के लिए लोगों को भेजना हो, कई कदम उठाए गए। यही कारण रहा कि मतदाताओं ने कांग्रेस की न्याय गारंटियों को नकार दिया।
मंत्रियों को बांटी गईं थीं जिम्मेदारी
भाजपा संगठन और सरकार ने मंत्रियों को अलग-अलग लोकसभा सीटों को जिम्मेदारी दी गई थी। सभी मंत्री पूरे समय अपने-अपने क्षेत्रों में डटे रहे। विधायकों को साथ लिया और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने का काम किया। इसका लाभ भाजपा के प्रत्याशियों को मिला।