2025 का आम बजट आने वाला है. हर कोई इस बात को लेकर उत्सुक है कि वित्त मंत्री इसमें क्या खास बदलाव लाने वाली हैं. आम आदमी की जिंदगी को आसान बनाने से लेकर इंडस्ट्री की समस्याओं का हल ढूंढने तक, इस बार के बजट से कई उम्मीदें जुड़ी हैं. जहां तक पर्सनल टैक्स की बात है, माना जा रहा है कि सरकार नए इनकम टैक्स रिजीम को बढ़ावा देने के लिए कुछ बड़ा कदम उठा सकती है. हालांकि हर बार की तरह इसकी उम्मीद है और लोगों की मांग है. परंतु हम उम्मीद करते हैं कि सरकार इस बार हर बार की तरह नहीं करेगी और कुछ एक्स्ट्रा पैसा लोगों की जेब में छोड़ेगी.

1 फरवरी अब ज्यादा दूर नहीं है, जब पता चल जाएगा कि सरकार बजट के पिटारे से क्या निकालेगी. इसी बीच चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं कि सरकार नए आयकर सिस्टम (New Tax Regime) को अपनाने के लिए टैक्सपेयर को प्रोत्साहित करने वाले उपायों की घोषणा कर सकती है. जुलाई (2024) के बजट में उठाए गए कदमों के बाद इस बार के बजट से उम्मीद है कि सरकार और बड़े प्रोत्साहन देगी, जिससे करदाताओं का रुझान इस नई प्रणाली की ओर बढ़े.
नया इनकम टैक्स रिजीम कम छूटों (exemptions) के साथ सीधी और सरल व्यवस्था है, लेकिन इसे अपनाने के लिए अब तक लोगों में ज्यादा उत्साह नहीं दिखा है. सरकार के इस कदम का उद्देश्य न केवल कर प्रणाली को सरल बनाना है, बल्कि अर्थव्यवस्था को स्थिरता और गति प्रदान करना भी है.
कंज्पशन बढ़ाने के लिए वित्तीय उपाय
प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रमुख अर्थशास्त्रियों के बीच हुई बैठकों में इस बात पर जोर दिया गया है कि उपभोग (Consumption) को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय उपाय जरूरी हैं. ऐसा करने पर इकॉनमी का पहिया तेजी से घूमेगा. हालांकि, यह कदम सरकार के राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) के टारगेट को चुनौती दे सकता है.
उद्योग जगत को उम्मीद है कि इस बार के बजट में वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली को सरल बनाने और कंप्लायंस से जुड़ी परेशानियों को कम करने के उपायों पर जोर दिया जाएगा. छोटे और मझोले उद्योगों (MSMEs) और कृषि क्षेत्र को सहायता देने के लिए लोन की नई योजनाओं पर विचार किया जा रहा है, जिससे इन क्षेत्रों को बढ़ावा मिले.

बिजनेस कानूनों में सुधार की मांग
इसके साथ ही, ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस (Ease of Doing Business) को बढ़ावा देने के लिए कई कानूनी सुधारों की मांग की जा रही है. इसमें कुछ कानूनों का अपराधमुक्त (Decriminalisation) करना भी शामिल है, जिससे बिजनेसों पर कानूनी बोझ कम हो सके और एक पॉजिटिव माहौल बने.
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों के बीच इस बजट को तैयार किया जा रहा है. घरेलू स्तर पर बिजनेसों के सामने मौजूद नियामकीय बोझ (Regulatory Burdens) और श्रम बाजार में सुधार की जरूरतें भी सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां हैं. बिजनेस जगत का मानना है कि यदि श्रम सुधारों और मौजूदा कानूनों के बेहतर कार्यान्वयन पर ध्यान दिया जाए, तो यह न केवल निवेश को बढ़ावा देगा, बल्कि रोजगार भी बढ़ेंगे.

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