देव आनंद। हिंदी सिनेमा के एक ऐसे स्टार जिनकी लोकप्रियता केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेश में भी थी।
लाहौर से ग्रेजुएशन करने के बाद 1943 में जेब में 30 रुपए लेकर देव आनंद बॉम्बे आए और फिर सुपरस्टार बन गए। 3 दिसंबर, 2011 को उनका निधन हो गया था।
आज देव आनंद के 101वें जन्मदिन के मौके पर नजर डालते हैं उनसे जुड़े दिलचस्प किस्सों पर…
किस्सा 1: जब देव आनंद जैसी स्माइल के लिए फैंस तुड़वाने लगे दांत 1943 में जब देव आनंद लाहौर से बॉम्बे आए थे तो शुरुआत में उन्हें क्लर्क की नौकरी करनी पड़ी। इसके बाद ब्रिटिश सरकार के दफ्तर में उन्होंने सैनिकों की चिट्ठियां पढ़ने का काम किया, लेकिन इसमें मन नहीं रमा तो एक्टर बनने की ठानी। एक दिन उनकी मुलाकात फिल्म प्रोड्यूसर बाबूराव से हुई। देव आनंद की कदकाठी, चाल-ढाल और हावभाव से बाबूराव इंप्रेस हो गए और उन्हें 1946 में आई फिल्म ‘हम एक हैं’ में रोल दे दिया।
इस बारे में देव आनंद ने अपनी किताब ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में लिखा था – ‘फिल्म की शूटिंग के दौरान मुझसे कहा गया कि मेरे दांतों के बीच गैप है जिसके लिए फिलर देना पड़ेगा। मैंने इनकार नहीं किया और फिलर भर दिया गया, मगर मुझे ये अटपटा लग रहा था। मैंने फिल्म के मेकर्स से फिलर हटाने की गुजारिश की और उन्होंने फिलर हटा दिया। मैं इस बात से खुश था कि फिल्मों में मैं जैसा था जनता ने मुझे वैसे ही पसंद किया था।’
‘हरे रामा हरे कृष्णा’, ‘जॉनी मेरा नाम’ जैसी हिट फिल्मों के बाद देव आनंद इतने मशहूर हो गए थे कि लड़के उनके जैसे दांतों का शेप रखने के लिए अपने दांत तक तुड़वाने लगे थे।
किस्सा 2: जब इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति ने देखी शूटिंग इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो भी देव आनंद के फैन थे। इससे जुड़ा एक किस्सा देव आनंद ने अपनी किताब रोमांसिंग विद लाइफ में शेयर किया था। उन्होंने कहा था, फिल्म ‘काला पानी’ की शूटिंग देखने इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो आए थे।
उस दिन हम ‘बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए’ गाने की शूटिंग कर रहे थे। हमें पहले ही बता दिया गया था कि वो सेट पर आएंगे। हमने दो घंटे उनका इंतजार किया, लेकिन वे नहीं आए तो हमने गाना शूट कर लिया। शूटिंग खत्म होते ही राष्ट्रपति आ गए। हमने उनके लिए दोबारा शूटिंग की। उन्होंने शूटिंग के दौरान खूब तालियां बजाई थीं।
किस्सा 3: जब देव आनंद की बात सुनकर हंस पड़े जवाहरलाल नेहरू ये किस्सा 1947 का है जब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने देव आनंद को खाने पर बुलाया था। इस दौरान देव आनंद के साथ राज कपूर और दिलीप कुमार भी मौजूद थे। तीनों रियल लाइफ में काफी गहरे दोस्त थे।
देव आनंद ने इस मुलाकात का किस्सा अपनी किताब रोमांसिंग विद लाइफ में शेयर करते हुए लिखा है, जब हम उनसे (नेहरू) मिलने पहुंचे तो उन्होंने हम तीनों को गले लगाया। वो बीमार चल रहे थे, लेकिन फिर भी हमसे बेहद गर्मजोशी से मिले। राज कपूर ने उनसे पूछा, ‘पंडितजी हमने सुना है आप जहां भी जाते थे महिलाएं आपके पीछे भागा करती थीं।
नेहरू ने कहा, मैं इतना पॉपुलर नहीं जितने तुम लोग हो। फिर मैंने उनसे सवाल किया, आपकी स्माइल ने लेडी माउंटबेटन को इम्प्रेस कर दिया था। क्या ये बात सच है?
नेहरू ने जोर से हंसते हुए कहा, अपने बारे में ये कहानियां सुन कर मुझे बेहद मजा आता है।
फिर दिलीप कुमार बोल पड़े, मगर लेडी माउंटबेटन ने खुद कहा था कि आप उनकी कमजोरी थे। नेहरू फिर जोर से हंसे और बोले, लोग चाहते हैं कि मैं इन कहानियों पर यकीन कर लूं।
किस्सा 4: ‘गाइड’ बनाने पर लोगों ने कहा- पागल 1965 में रिलीज हुई फिल्म ‘गाइड’ देव आनंद के करियर की सबसे बड़ी फिल्मों में एक थी। यह फिल्म उस जमाने के हिसाब से काफी बोल्ड थी जिसमें एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर को दिखाया गया था। यही वजह है जब देव आनंद इस फिल्म को बना रहे थे तो फिल्म इंडस्ट्री के कुछ लोगों ने उन पर सवाल उठाए। ये बात देव आनंद ने खुद एक इंटरव्यू में बताई थी।
उन्होंने कहा था, जब हमने गाइड बनाई जो कि एडल्ट्री पर थी। लोगों ने मुझे कहा ये पागल हो गया है। देव अपने आपको बर्बाद कर रहा है, इसका स्टारडम खत्म हो जाएगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब फिल्म बन गई और देव आनंद ने फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक स्पेशल प्रीमियर शो रखा तो कई सेलेब्स फिल्म देखने तो आए, लेकिन उन्होंने शो के बाद एक शब्द भी नहीं कहा। जब फिल्म रिलीज हुई तो धीरे-धीरे इसे पॉजिटिव रिव्यू मिलने लगे और फिल्म देखने के लिए दर्शक सिनेमाघरों का रुख करने लगे। इसे आज भी क्लासिक फिल्म माना जाता है।
किस्सा 5: जब डाकू ने खटखटाया देव आनंद के कमरे का दरवाजा बात 1957 की है जब देव आनंद फिल्म ‘नौ दो ग्यारह’ की शूटिंग कर रहे थे। शूटिंग मध्यप्रदेश के शिवपुरी में चल रही थी। उस दौर में उस इलाके में डाकुओं का बोलबाला था। शूटिंग का पैकअप होने के बाद देव आनंद सहित पूरी टीम एक गेस्ट हाउस में ठहरी थी। आधी रात को किसी ने देव आनंद के कमरे का दरवाजा खटखटाया।
उन्होंने अंदर से पूछा-कौन है? आवाज आई- हम हैं अमर सिंह। देव आनंद ने डरते हुए दरवाजा खोला तो सामने बड़ी-बड़ी मूंछों वाला डाकू खड़ा था। देव आनंद कुछ बोल पाते, इससे पहले ही डाकू ने एक्टर की तस्वीर निकाली और कहा-आप इस पर अपने साइन कर दीजिए। ये सुनते ही देव आनंद की जान में जान आई। उन्होंने झट से अपनी तस्वीर पर ऑटोग्राफ दिया जिसे देखकर डाकू ने कहा-देव साहब आपको कभी भी किसी चीज की जरूरत पड़े तो हमें याद कीजिएगा।
किस्सा 6: जीनत अमान ने ऑफर की सिगरेट और देव आनंद ने कहा- हीरोइन बनोगी? देव आनंद ने बड़े भाई चेतन आनंद के साथ मिलकर 1949 में अपना बैनर नवकेतन लॉन्च किया था। इसके बैनर तले बनी सबसे सफल फिल्मों में से एक 1971 में आई फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ थी जिसमें देव आनंद की बहन के किरदार में जीनत अमान नजर आई थीं। फिल्म में जीनत की कास्टिंग के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है। दरअसल, उस दौर में कोई भी एक्ट्रेस देव आनंद की बहन का किरदार नहीं निभाना चाहती थी। देव आनंद भी ऐसा चेहरा ढूंढ-ढूंढकर थक गए थे। तभी एक पार्टी में उनकी नजर मिस एशिया का खिताब जीत चुकी जीनत अमान पर पड़ी। जीनत देव आनंद के सामने बैठी थीं।
देव आनंद को जीनत में अपनी फिल्म की मेन लीड एक्ट्रेस की छवि दिख गई। देव आनंद ने देखा कि जीनत ने अपनी जेब से सिगरेट का पैकेट और लाइटर निकाला। फिर सिगरेट होठों से दबाई और उसे लाइटर से जलाया। जब जीनत की नजर उन्हें देख रहे देव आनंद पर पड़ी तो उन्होंने प्यारी सी स्माइल देकर देव आनंद को भी सिगरेट ऑफर की। देव आनंद इनकार नहीं कर सके। फिर देव आनंद ने उनसे पूछा कि क्या आप फिल्मों में काम करेंगी? जीनत ने देव आनंद के चेहरे पर सिगरेट का धुआं छोड़ा और उन्हें देखती रहीं। देव आनंद ने अगला सवाल करते हुए कहा कि क्या मैं तुम्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए बुला सकता हूं।
जीनत ने पूछा, कब?
देव आनंद ने कहा कल आ जाओ। जो भी समय तुम्हें सही लगे। जीनत अगले दिन स्क्रीन टेस्ट के लिए पहुंच गईं और इस तरह उन्हें अपनी डेब्यू फिल्म मिली।
फिल्म में जीनत अमान पर फिल्माया और आशा भोसले का गाया गाना ‘दम मारो दम’ बेहद पॉपुलर हुआ और जीनत बड़ी स्टार बन गईं।