पुरानी टैक्स व्यवस्था को पूरी तरह से हटाने की डेडलाइन को लेकर भी अटकलें हैं, क्योंकि टैक्सपेयर्स ने दो समानांतर टैक्स सिस्टम से पैदा होने वाली जटिलताओं के बारे में चिंता व्यक्त की है।
अगर आप टैक्सपेयर (करदाता) हैं तो आपको अच्छी तरह पता है कि फिलहाल टैक्स के दो रिजीम हैं। एक पुराना दूसरा नया। नए टैक्स रिजीम को बजट 2020 में, मोदी सरकार ने शुरू किया था। इसमें करदाताओं को कटौती और छूट के बिना सरलीकृत कर स्लैब के तहत कम कर दरों का लाभ उठाने का विकल्प दिया गया। तब से नए रिजीम की शुरुआत हुई है, तब से पुराने टैक्स रिजीम को लेकर लगातार चर्चा है कि क्या इसे पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए?
नई कर व्यवस्था है डिफॉल्ट विकल्प
आगामी बजट को देखते हुए पुरानी टैक्स व्यवस्था को पूरी तरह से हटाने की डेडलाइन को लेकर भी अटकलें हैं, क्योंकि करदाताओं ने दो समानांतर कर प्रणालियों से पैदा होने वाली जटिलताओं के बारे में चिंता व्यक्त की है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, बजट 2023 में नई कर व्यवस्था को डिफ़ॉल्ट विकल्प बनाए जाने के बावजूद, ये चिंताएं लगातार बनी हुई हैं। क्योंकि निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को मोदी 3.0 सरकार के तहत अपना दूसरा पूर्ण बजट पेश करेंगी तो ऐसे में पुरानी कर व्यवस्था के खत्म करने की घोषणा होने की भीं संभावनाएं जताई जा रही हैं।

टैक्सपेयर्स की मांग
करदाता एक बार फिर से अनुपालन को सरल बनाने और करदाताओं के लिए जटिलताओं को कम करने के लिए सिंगल टैक्स व्यवस्था के पक्ष में डबल टैक्स व्यवस्था को हटाने की मांग कर रहे हैं। जानकार भी मौजूदा व्यवस्था की जटिलताओं को उजागर कर रहे हैं और व्यक्तिगत कराधान को सरल और तर्कसंगत बनाने के उपाय सुझा रहे हैं। जानकार कहते हैं कि अधिकांश व्यक्तिगत करदाता, खासतौर से सैलरी पाने वाले व्यक्ति, अपनी कर देयता की गणना खुद करते हैं।

हो सकता है अगला कदम
जानकारों का यह भी मानना है कि प्रोफेशन या पेशे से आय अर्जित करने वाला टैक्सपेयर जो धारा 115BAC के तहत नई कर व्यवस्था से बाहर निकलता है, वह सिर्फ एक बार ही इसमें वापस आ सकता है, जिससे प्रक्रिया कम लचीली हो जाती है। उनका कहना है कि आगामी बजट 2025 में व्यक्तिगत कराधान पर डायरेक्टर टैक्सेशन में संभावित बदलावों पर कहा कि पुरानी कर व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म करना और नई कर व्यवस्था के तहत आयकर स्लैब को तर्कसंगत बनाना एक तार्किक अगला कदम है।

क्या है संभावनाएं
जानकार कहते हैं कि नई कर व्यवस्था के तहत, आयकर बहुत आसान हो गया है। 7 लाख रुपये की छूट सीमा के साथ, करदाता उसी आय स्तर पर शून्य कर का भुगतान करते हैं, जिस पर उन्हें पहले कर लगाया जाता था। नई व्यवस्था में कर की दर को कम करने से इसे कम करने में मदद मिल सकती है। यह उम्मीद है कि मूल छूट या छूट सीमा को ₹9 लाख तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे मध्यम वर्ग के हाथों में अधिक पैसा आएगा। 15 लाख रुपये से अधिक कमाने वाले करदाताओं के लिए, नई व्यवस्था में संक्रमण से वित्तीय झटका लग सकता है।

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