उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में धनतेरस पर भस्म आरती के साथ दीप उत्सव की शुरुआत हुई। शुक्रवार तड़के सुबह 4 बजे मंदिर के कपाट खोले गए। भगवान महाकाल का सबसे पहले जलाभिषेक किया गया। इसके बाद दूध, दही, घी, शहद, फल के रस से बने पंचामृत से अभिषेक कर पूजन हुआ, फिर बाबा को भस्म चढ़ाई गई। धनतेरस पर बाबा महाकाल का विशेष श्रृंगार किया गया। महाकाल मंदिर के पुरोहित और पंडितों ने देश में सुख, समृद्धि की कामना के साथ भगवान महाकाल की विशेष पूजन कर भस्म आरती की। सैकड़ों श्रद्धालु भस्म आरती में शामिल हुए, महाकाल के भक्तों ने जयकारे लगाए।
10 नवम्बर को मंदिर में धनतेरस मनाया गया। इस दिन मंदिर के पुरोहित परिवार द्वारा सुबह भगवान का अभिषेक पूजन किया गया। इस दिन पुरोहित समिति द्वारा देश में सुख, समृद्धि व अरोग्याता की कामना से भगवान महाकाल का अभिषेक-पूजन किया गया।
भगवान श्री महाकाल मंदिर में पारंपरिक दीपोत्सव वैसे तो रमा एकादशी पर गर्भगृह और नंदीहाल में दीप जलाकर दीप उत्सव का आगाज किया गया जिसके बाद आज सुबह श्री महाकाल मंदिर मे धनतेरस का पर्व मनाया गया। परंपरानुसार धनतेरस पर सुबह समस्त पुजारी-पुरोहित समिति द्वारा भगवान का अभिषेक व पूजन अर्चन किया गया। इस दौरान पूजन मे मंदिर समिति के अध्यक्ष व कलेक्टर मंदिर समिति के प्रशासक व अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे। दीपावली उत्सव के तहत सुबह धनतेरस पर्व पर श्री महाकालेश्वर मंदिर पुरोहित समिति के तत्वावधान मे सुबह भगवान महाकालेश्वर का पूजन-अभिषेक किया गया। रविवार 12 नवंबर को सुबह रूप चौदस पर भगवान महाकाल को अभ्यंग स्नान करवाया जाएगा, इस दौरान बाबा को हल्दी, चंदन, इत्र, सुगंधित द्रव्य से स्नान होगा। पुजारी परिवार की महिलाएं भगवान को उबटन लगाएंगी। इसके साथ ही बाबा को गर्म जल से स्नान प्रारंभ होगा।
बाबा महाकाल के आंगन में सबसे पहले मनाया जाता है पर्व
उज्जैन शहर की परंपरा है कि यहां पर दीपावली की शुरुआत भगवान महाकाल के मंदिर से होती है। सबसे पहले यहां आयोजन होते हैं, उसके बाद शहर में दीपावली महोत्सव प्रारंभ होता है। पं. महेश पुजारी ने बताया कि रमा एकादशी से शाम से महाकाल मंदिर में दीप प्रज्जवलन का सिलसिला शुरू हो गया।जो दीपावली तक चलेगा। दीप प्रज्जवलन गर्भगृह और नंदीहाल से प्रारंभ हुआ। इसके बाद मंदिर परिसर में स्थित अन्य मंदिरों में भी दीपों का प्रज्जवलन किया गया।धनतेरस के पूजन में आज यह हुआ
10 नवम्बर को मंदिर में धनतेरस मनाया गया। इस दिन मंदिर के पुरोहित परिवार द्वारा सुबह भगवान का अभिषेक पूजन किया गया। इस दिन पुरोहित समिति द्वारा देश में सुख, समृद्धि व अरोग्याता की कामना से भगवान महाकाल का अभिषेक-पूजन किया गया। पं. महेश गुरु ने बताया कि भगवान को सुख-समृद्धि के लिए चांदी का सिक्का अर्पित कर पूजा-अर्चना की गई।
गर्म जल से शुरू होगा बाबा महाकाल का स्नान
रूप चतुर्दशी पर पुजारी परिवार की महिलाएं भगवान को केसर चंदन का उबटन लगाएंगी। पुजारी भगवान को गर्म जल से स्नान कराएंगे। कर्पूर से आरती होगी। साल में एक दिन रूप चतुर्दशी पर पुजारी परिवार की महिलाएं भगवान का रूप निखारने के लिए उबटन लगाकर कर्पूर आरती करती हैं। स्नान के बाद महाकाल को नए वस्त्र, सोने चांदी के आभूषण धारण कराकर आकर्षक श्रृंगार किया जाएगा। इसके बाद अन्नकूट भोग लगाकर फुलझड़ी से आरती की जाएगी। भस्म आरती में पुजारी केसर, चंदन का उबटन लगाकर भगवान को गर्म जल से स्नान कराएंगे। सोने चांदी के आभूषण से आकर्षक श्रृंगार कर नए वस्त्र धारण कराए जाएंगे। पश्चात अन्नकूट का महाभोग लगाकर फुलझड़ी से आरती की जाएगी। शाम को दीपोत्सव अंतर्गत समृद्धि के दीप जलाए जाएंगे।
12 नवंबर को दीपावली, गोवर्धन पूजन 14 को
12 नवंबर को सुबह रूप चौदस और शाम को दीपावली पर्व मनेगा। भस्मारती से रात 10.30 बजे शयन आरती तक नियमित पांच आरतियों में फुलझड़ी चलाई जाएगी। भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाएगा। अगले दिन 13 नवंबर को सोमवती अमावस्या रहेगी। 14 नवंबर को कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर मंदिर के मुख्य द्वार पर पुजारी परिवार की महिलाएं गोबर से गोवर्धन बनाकर पूजा-अर्चना करेगी। इसके बाद चिंतामन स्थित मंदिर की गोशाला में गोवंश की पूजा-अर्चना की जाएगी।
माँ गजलक्ष्मी का हुआ दुग्धाभिषेक
नईपेठ स्थित माता गजलक्ष्मी मंदिर मे धनतेरस से दीपावली उत्सव प्रारंभ हो गया है। मंदिर के पुजारी पं.राजेश शर्मा ने बताया धनतेरस से दीपावली तक तीन दिन सुबह 8 बजे से माता गजलक्ष्मी का दुग्धाभिषेक होगा। दीपावली के दिन 2100 लीटर दूध से अभिषेक किया जाएगा। दिन में माता का विशेष श्रंगार कर पूजा-अर्चना की जाएगी। इसके बाद हवन होगा। शाम को छप्पन पकवानों का भोग लगाकर महाआरती की जाएगी। सुबह से रात 2 बजे तक दर्शनार्थियों का तांता लगा रहेगा। महिलाओं को सौभाग्य कुमकुम व प्रसादी बांटी जाएगी। मान्यता है कि प्राचीन गजलक्ष्मी माता की आराधना करने से धन धान्य की प्राप्ती होती है। माँ गजलक्ष्मी राजा विक्रमादित्य की राजलक्ष्मी के रूप में यहां विराजित है।