भोपाल। राजधानी भोपाल को झुग्गी मुक्त करने के लिए विगत दिवस मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने झुग्गियों को हटाने के लिए विस्तृत प्लान बनाने को कहा है। विस्तृत प्लान बनाने से पहले हरिभूमि ने सिटी प्लानर से चर्चा की तो यह तथ्य सामने आए कि कोई भी शहर झुग्गी मुक्त तब तक नहीं हो सकता, जब तक झुग्गी वालों को वर्तमान से बेहतर सुविधाएं नहीं देते हैं, वर्ना यही होता रहेगा जैसे भोपाल सहित अन्य महानगरो में पक्के आवास भी दिए गए और शहर झुग्गी मुक्त भी नहीं हो पाया। जबकि भोपाल में सबसे बड़ी बात यह है कि पक्के मकान जिन लोगों को दिए गए, उन्होंने झुग्गी भी खाली नहीं की। इस व्यवस्था को सुधारने के लिए मकान देते समय ही झुग्गी तोडकर उसका फोटो आवंटित से लेना होगा।
मुख्यमंत्री द्वारा यह कहा गया कि पहले पीएम आवास वाले भवन तैयार करें और फिर झुग्गियों को खाली कराएं। नियम के अनुसार नगर निगम को मकान आवंटित करने से पहले उसकी झुग्गी को तोड़ने का फोटो भी लगाना चाहिए, जिससे झुग्गी की संख्या कम हो। झुग्गी मुक्त करने के लिए प्लान बनाने का समय अक्टूबर तक का समय है। सिटी प्लानर के अनुसार प्लान तो बन जाएगा, लेकिन अमल करने के लिए यह तय करना होगा कि जहां से झुग्गी हटाना हो उसे तोड़ दिया जाए। साथ ही मकानों की हालत बेहतर हो और आसपास भी सुविधाएं उपलब्ध हों। इसके बाद ही झुग्गी में रहने वाला व्यक्ति मकान में शिफ्ट होने में संकोच नहीं करेगा।
प्राइम लोकेशन से हटना नहीं चाहते लोग
रोशनपुरा बस्ती 17 एकड़ में फैली है। यह स्थान ऐसा है कि यहां की आबादी दूर जाना नहीं चाहती। इनके लिए विकसित और बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराना होगा। उसके बाद उनसे चर्चा करने के बाद ही तैयार करना होगा कि झुग्गी से बेहतर उस स्थान पर रहना अच्छा होगा, जहां उन्हें भेजा जा रहा है। जबकि बाणगंगा सहित करीब 300 एकड़ में फैली 388 बस्ती वालों को उसी स्थान पर मकान चाहिए। इन लोगों को जहां मकान दिए जा रहे हैं, वहां विकास इन्हीं बस्तियों के समान करना होगा।
झुग्गी कब से बनना शुरू हुईं
नगर निगम के पूर्व आयुक्त देवी सरन के अनुसार भोपाल में झुग्गियों का चलन उस समय शुरू हुआ, जब अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे। उस दौरान गांवों व दूसरे शहरों से लोगों को राजधानी में नौकरी की तलाश में आना शुरू हुआ। वर्ष 1980 से पहले भी झुग्गी थीं, लेकिन उनकी संख्या सीमित थी। वर्ष 1980 के बाद पट्टा दिया जाने लगा, तब झुग्गी की संख्या लगातार बढ़ती चली गई।
झुग्गी बस्ती से बेहतर निर्माण हो
कोई भी शहर तभी झुग्गी मुक्त हो सकता है, जब झुग्गी को तोड़कर मकान दिया जाए और जहां से व्यक्ति को हटाया जा रहा है, उससे अच्छी व्यवस्था और मकान का निर्माण भी बेहतर हो। इसलिए पीएम आवास बनाने की गति बढ़ाई जाए या झुग्गी को शिफ्ट करने के स्थान को झुग्गी बस्ती से बेहतर डेवलप किया जाए।
वीपी कुलश्रेष्ठ, पूर्व सिटी प्लानर व राष्ट्रीय सिटी प्लानर एसोसिएशन सदस्य
दस हजार करोड़ की 650 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा
शहर को स्लम फ्री बनाने की कवायद एक बार फिर से शुरू होने जा रही है, जिसके तहत मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की हिदायत के बाद चिन्हित 73 झुग्गी बस्तियों के रहवासियों को जेएनएनयूआर प्रोजेक्ट के तहत फ्लैट दिए जाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। पुरानी झुग्गी बस्तियां हटाने आसपास जगहों की तलाश की जा रही है। शहर में अब तक झुग्गियों को हटाने में 1450 करोड़ रुपए खर्च हो गए हैं। शहर में झुग्गी बस्तियों के इलाकों की संख्या 73 तक पहुंच गई है। सबसे ज्यादा झुग्गी वाले देश के टॉप-10 शहरों में भोपाल भी शामिल है। शहर में दस हजार करोड़ की 650 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा करने का अनुमान है।
निगम के साथ मिलकर स्लम फ्री करेंगे शहर
शहर में हमारे पास जमीनें कम हैं। जितनी हैं, उन पर पीएम आवास बनाए जा रहे हैं। इसमें से 50 फीसदी स्लम वालों के लिए हैं। नई झुग्गियों की बसाहट रोकने नियमित कार्रवाई की जाती है। निगम के साथ मिलकर शहर को स्लम फ्री बनाने की योजना है।
कौशलेंद्र विक्रम सिंह, कलेक्टर
16 साल से चल रही कवायद
साल 2008 में जेएनएनयूआर प्रोजेक्ट के तहत 11,500 आवास बनाए गए। जिसमें अर्जुन नगर, मैनिट के पास, कोटरा सुल्तानाबाद नेहरू नगर, 1100 क्वाटर्स शामिल हैं। इन पर करीब 448 करोड़ खर्च हुए, पर अब कलियासोत कैचमेंट के भीतर झुग्गियां बन गईं, जिन्हें मकान मिले, उन्होंने भेल क्षेत्र में भी झुग्गी बना लीं। अब फिर शहर में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 14 हजार फ्लैट बनाने का अभियान चल रहा है। इस पर 546 करोड़ खर्च होंगे।