जयपुर से 300 किलोमीटर दूर है हनुमानगढ़ का मंदरपुरा गांव। दिल्‍ली से करीब 16 घंटे सफर कर मैं यहां पहुंची। तंग गली के आखिर में बड़े से दरवाजे का एक मकान। मैं काफी देर दरवाजा खटखटाती रही, लेकिन कोई बाहर नहीं आया। मैंने आसपास के लोगों से पूछा- ‘घर के अंदर लोग तो हैं न, फिर कोई दरवाजा क्यों नहीं खोल रहा।’ एक शख्स ने बताया- ‘घर के अंदर लोग तो हैं, लेकिन उनकी जिंदगी खालीपन से भर गई है। बहुत नाउम्मीद हो गए हैं। हाल ही में इन लोगों ने जवान बेटा खोया है। अब ये लोग किसी से बात नहीं करते, बेटे के बारे में तो बिल्कुल नहीं।’ ये घर कन्हैया लाल पारीक का है। वही कन्‍हैया, जिन्‍होंने दिसंबर 2022 में रीट पेपर लीक होने पर कीटनाशक पीकर जान दे दी थी। उसने सुसाइड लेटर में उसने लिखा था, ‘सॉरी पापा, मैं आप लोगों के लिए कुछ नहीं कर सका। लव स्‍नेहा’ फरवरी 2020 में जब में कोरोना महामारी पैर पसार रही थी, उसी दौरान कन्‍हैया और स्‍नेहा की शादी हुई थी। कन्‍हैया अपनी पत्‍नी से कहा करता था, ‘अभी मेहनत का समय है। एक बार हमारी सरकारी नौकरी हो जाए, फिर हम खुलकर अपनी जिंदगी जिएंगे।’ शादी को एक साल ही बीता था कि कन्‍हैया ने जिंदगी से हार मान ली। जब उसकी डेड बॉडी गांव पहुंची, तो स्‍नेहा कई बार रोते हुए बेहोश हुई, जागी, और फिर बेहोश हुई। अगले 2 महीनों तक बीमार रही। परिवार से स्‍नेहा की ऐसी हालत देखी नहीं जा रही थी। इसी साल फरवरी-मार्च में परिवार ने कन्‍हैया के फुफेरे भाई से स्‍नेहा की दूसरी शादी करा दी। स्‍नेहा का दूसरा पति भी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा है।

कन्हैया का शव घर से थोड़ी दूर पर सिंचाई विभाग के खंडहर क्वार्टर के पास मिला था।
कन्हैया का शव घर से थोड़ी दूर पर सिंचाई विभाग के खंडहर क्वार्टर के पास मिला था।

कन्‍हैया के परिवार से मिलने के लिए 2 दिन पहले मैंने भाई मदनलाल से फोन पर बात की थी। उन्‍होंने कहा था कि कोई भी कन्‍हैया के बारे में बात नहीं करना चाहता, मैं उनसे मिलने न आऊं। पर मैं आ गई। जब घर पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला, तो गांव के सरपंच और परिवार के एक करीबी नरेंद्र तिवारी से मिली। उनसे कहा कि वे मदनलाल और उनके परिवार से मेरी बात करा दें। आखिरकार दरवाजा खुला। कन्‍हैया के चाचा प्रेमसुख ने मुझे अंदर बिठाया। बीच-बीच में कन्‍हैया की दादी कमरे में झांककर देखतीं कि कौन आया है। उनके अलावा कोई और मिलने नहीं आया। कन्‍हैया के पिता ने कैमरे पर आने और बात करने से साफ मना कर दिया। मैंने चाचा से कहा, ‘आप कहिए तो शायद वो राजी हो जाएं।’ इस पर चाचा ने नाराज होते हुए जवाब दिया, ‘जब 25 साल के बेटे की लाश बाप कंधे पर रखकर चलता है तो कुछ कहने को बाकी नहीं रहता।’ मैंने मदनलाल से बात करने की कोशिश की। पहला सवाल पूछा, ‘आपको भाई की कौन सी बात सबसे ज्‍यादा याद आती है।’
उन्‍होंने बगैर मेरी ओर देखे जवाब दिया, ‘बस भाई ही याद आता है।’
मैंने अगला सवाल पूछने की कोशिश की उससे पहले ही वो उठकर खड़े हो गए, ‘प्‍लीज फोटो वीडियो मत लीजिए। हम इस हालत में नहीं हैं। हमारी ओर से चाचा जी ही आपसे बात करेंगे।’ परिवार के इस रवैये में मैंने एक बेबसी महसूस की। कन्‍हैया का जिक्र भी पूरे परिवार के लिए कोई ताजा जख्‍म कुरेदने जैसा था। परिवार अब तक इस सदमे से उबरा नहीं है। न ही किसी के मन से सरकार के खिलाफ गुस्सा कम हुआ है। कन्हैया के चाचा प्रेमसुख पारीक कहते हैं, ‘हमें इस बात का अंदाजा नहीं था कि वो ऐसा कदम उठा लेगा। अंदाजा होता तो हम उसे सरकारी नौकरी से हटा लेते (सरकारी नौकरियों की तैयारी से रोक लेते)। जमीन संभालने या कोई प्राइवेट नौकरी करने के लिए कहते। उसने हमें पता ही नहीं लगने दिया कि वो इस हद तक डिप्रेशन में है। उस पर तो टीचर बनने का जुनून सवार था। उसे पढ़ने और पढ़ाने दोनों का बहुत शौक था। इसके अलावा उसने कोई शौक नहीं पाला।’ बात करते करते प्रेमसुख भावुक हो जाते हैं। बेचैन होकर कहते हैं, ‘दुनिया की कोई खुशी हमारे घर आ जाए, लेकिन हम एक पल के लिए कन्हैया को नहीं भूलते। हम लोग उसके बारे में कोई बात ही नहीं करते। शुरू से लेकर आखिर तक वो क्लास में पहले नंबर पर आया। कोई खास शौक नहीं रहा उसे। न खेलने का न घूमने का। बस पढ़ाई, पढ़ाई।  कन्हैया बचपन से लेकर आज तक हमारा हर सपना पूरा करता चला गया। दसवीं, बारहवीं और B.Ed में अव्वल आया, लेकिन जब उसके सपने की बारी आई तो सिस्टम उसे खा गया।’ एक बार फिर चाचा का गला भर आता है। कुछ देर रुककर फिर कहते हैं, ‘REET के पेपर में उसके 150 में से 135 नंबर तक थे। उसने 10-15 नंबर का ही छोड़ा था। रिजल्ट आता तो उसका सिलेक्शन पक्का था, लेकिन दुर्भाग्य था कि पेपर लीक हो गया। उससे पहले साल में वनपाल का पेपर भी दिया था जो क्लियर हो गया था, लेकिन वो पेपर भी लीक हो गया। लगातार दो साल पेपर लीक से डिप्रेशन में चला गया था।’ कन्हैया की मौत के दो महीने के बाद ही गम में उसके दादा की भी मौत हो गई थी। परिवार में अब एक अजीब ही खामोशी है। घर एकदम सूना लगता है, कोई आवाज नहीं, सब अपने कमरे में, सिर्फ पंखा चलने की आवाज आती है। मैंने कन्हैया के घर से बाहर निकलकर कुछ गांववालों से बातचीत की। पता चला कि यहां सरकारी नौकरी का गजब ही आकर्षण है। गांव में सरकारी परीक्षाओं की तैयारी के विज्ञापन के बोर्ड भरे पड़े हैं, लेकिन कन्हैया की मौत के बाद गांव वालों का सरकारी नौकरी के प्रति मोहभंग हो गया है। वे कहते हैं कि सरकारी नौकरी की परीक्षाओं में बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। गांव की चौपाल पर आए तो ताऊ लोग पत्ते खेलने में व्यस्त हैं। इन्हीं में कन्हैया के दादा के सगे भाई राम विलास पारीक भी हैं। वह कहते हैं- ‘पेपर लीक होने की वजह से कन्हैया डिप्रेशन में था। वो सरकार से निवेदन करते हैं कि पेपर लीक के खिलाफ कड़ा कानून बने, ताकि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न हो।’ गांव वाले बताते हैं कि कन्हैया पढ़ाई में इतना तेज था कि गांव में हर किसान अपनी फसल का हिसाब, बीमा का हिसाब उसी से करवाता था। वो मिनटों में जो हिसाब बनाकर देता था, बीमे की उतनी ही रकम अकाउंट में आती थी। गांव के स्कूल में गणित का टीचर नहीं था, इसलिए कन्हैया वहां फ्री में पढ़ाता भी था। गांव में किसी का कुछ ट्यूबवेल या बिजली का कुछ खराब हो जाए तो कन्हैया जाकर ठीक कर देता था। गांव के पूर्व सरपंच हेमराज शर्मा बताते हैं कि गांव में उन्होंने एक युवा ब्रिगेड बना रखी थी जिसमें अक्सर कन्हैया आया करता था। गांव के किसी भी घर का कोई काम हो, गांव में किसी बेटी की शादी हो, 26 जनवरी या 15 अगस्त हो, गांव के कार्यक्रमों में सबसे आगे रहता था। हेमराज शर्मा बताते हैं, ‘जिस दिन कन्हैया की बॉडी गांव में आई, उस दिन पूरे गांव में चूल्हा नहीं जला था। उसकी मौत के बाद सबकी जुबान पर एक ही बात है कि पेपर लीक ने परिवार को बर्बाद कर दिया।’ एक बुजुर्ग ग्रामीण मदनलाल कहते हैं, ‘दो साल तक बच्चा तैयारी करता है, मां बाप पैसे खर्च करते हैं, लेकिन अंत कैसा होता है। कन्हैया की मौत के जिम्‍मेदार जो हैं, उन्‍हें पकड़ना चाहिए, उन्हें सजा होनी चाहिए।’